रूस से सस्ते दामों पर कच्चे तेल की खरीद।
भारत ने दुनिया को एक बार फिर यह दिखा दिया है कि उसकी आर्थिक नीति केवल संख्याओं का खेल नहीं, बल्कि रणनीतिक सोच का परिणाम है। रूस से तेल खरीद में भारत अब दूसरे स्थान पर पहुंच चुका है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक रिश्तों में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
डेस्क: जब पश्चिमी देशों ने रूस पर यूक्रेन युद्ध के कारण प्रतिबंध लगाए, तब अधिकांश यूरोपीय देशों ने रूसी तेल से दूरी बना ली। लेकिन भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए एक समझदारी भरा कदम उठाया — रूस से सस्ते दामों पर कच्चे तेल की खरीद। इस कदम ने न केवल भारत की ऊर्जा आपूर्ति को सुरक्षित किया, बल्कि उसे वैश्विक तेल बाजार का एक मजबूत खिलाड़ी भी बना दिया।
भारत की यह रणनीति एक तरह से वैश्विक आर्थिक समीकरणों को बदलने वाली रही। जहां पहले भारत की तेल जरूरतें मुख्य रूप से सऊदी अरब और इराक से पूरी होती थीं, वहीं अब रूस इन देशों को पीछे छोड़ते हुए भारत का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है।
💹 व्यापार में नया रिकॉर्ड: रूस से तेल आयात में 35% से अधिक वृद्धि
तेल मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत का रूस से तेल आयात 2021 के मुकाबले करीब 15 गुना बढ़ गया है। पहले जहां रूस से तेल आयात कुल जरूरत का केवल 2% था, अब यह हिस्सा बढ़कर लगभग 35% से अधिक हो चुका है।
इससे भारत की रिफाइनिंग कंपनियों — जैसे इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ — को भारी लाभ हुआ है। रूसी कच्चा तेल सस्ता होने के कारण इन कंपनियों की उत्पादन लागत कम हुई और भारतीय बाजार में पेट्रोल-डीजल के दामों में स्थिरता बनी रही।
⚡ ऊर्जा सुरक्षा के लिए भारत की नई नीति
भारत दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल उपभोक्ता देशों में से एक है। हर साल ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत को विशाल मात्रा में तेल आयात करना पड़ता है। ऐसे में रूस से सस्ता तेल खरीदना एक आर्थिक रूप से समझदारी भरा कदम साबित हुआ है।
इस नीति से भारत को महंगाई पर नियंत्रण रखने में मदद मिली है और विदेशी मुद्रा भंडार पर भी सकारात्मक असर पड़ा है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत ने इस निर्णय से सालाना अरबों डॉलर की बचत की है।
💬 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं का केंद्र बना भारत
भारत के इस फैसले ने पश्चिमी देशों का ध्यान आकर्षित किया है। अमेरिका और यूरोपीय संघ के कई नेताओं ने भारत के रुख पर सवाल उठाए, लेकिन भारत ने साफ कहा कि वह अपनी ऊर्जा नीति किसी दबाव में नहीं बदलेगा। विदेश मंत्रालय ने बार-बार दोहराया कि भारत का प्राथमिक लक्ष्य अपने नागरिकों के हित और ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई मौकों पर कहा कि “भारत अपनी जनता की जरूरतों के लिए स्वतंत्र निर्णय लेता है।” यही कारण है कि रूस और भारत के बीच व्यापारिक रिश्ते पिछले एक साल में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचे हैं।
🛢️ रूस के लिए भारत बना भरोसेमंद खरीदार
रूस के लिए भी भारत एक स्थायी और भरोसेमंद ग्राहक बनकर उभरा है। यूरोप और अमेरिका से घटती मांग के बीच भारत ने रूस के लिए नया बाजार खोला है। अब रूस न केवल कच्चे तेल, बल्कि खाद्य तेल, कोयला और उर्वरक जैसे उत्पादों में भी भारत को प्राथमिकता दे रहा है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी कहा था कि “भारत और रूस की साझेदारी केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक है।” यह बयान स्पष्ट करता है कि आने वाले वर्षों में दोनों देशों के बीच सहयोग और भी गहरा होने वाला है।
💰 रुपये-रूबल व्यापार व्यवस्था की शुरुआत
रूस पर डॉलर आधारित भुगतान प्रणाली की बाधाओं को देखते हुए भारत और रूस ने रुपये-रूबल व्यापार तंत्र शुरू किया है। इसका मकसद डॉलर पर निर्भरता घटाना और द्विपक्षीय व्यापार को आसान बनाना है। हालांकि यह प्रणाली अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन इसका भविष्य उज्ज्वल माना जा रहा है। इससे भारतीय कंपनियों को भी अंतरराष्ट्रीय भुगतान में स्थिरता मिलेगी।
🧭 चुनौतियाँ भी हैं रास्ते में
जहाँ एक ओर यह उपलब्धि भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता को मजबूत करती है, वहीं कुछ चुनौतियाँ भी सामने हैं। रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों का असर भविष्य में आपूर्ति पर पड़ सकता है। इसके अलावा, यदि वैश्विक राजनीतिक माहौल में अचानक बदलाव आता है, तो भारत को तेल स्रोतों में विविधता बनाए रखनी होगी ताकि किसी एक देश पर निर्भरता का खतरा न बढ़े।
इसी वजह से भारत ने घरेलू तेल उत्पादन, जैव ईंधन और हरित ऊर्जा पर भी फोकस बढ़ाया है। सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में तेल आयात पर निर्भरता धीरे-धीरे कम की जाए और ऊर्जा आत्मनिर्भरता हासिल की जाए।
🔮 आने वाला कल: भारत का बढ़ता प्रभाव
रूस से तेल खरीद में दूसरा स्थान हासिल करना केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि यह भारत के वैश्विक प्रभाव और कूटनीतिक आत्मविश्वास का प्रतीक है। आज भारत न सिर्फ एक आयातक देश है, बल्कि ऊर्जा बाजार का एक निर्णायक खिलाड़ी बन चुका है।
आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि भारत इसी दिशा में संतुलित नीति अपनाता रहा, तो आने वाले वर्षों में वह ऊर्जा क्षेत्र में दुनिया के शीर्ष तीन निर्णायक देशों में शामिल हो सकता है। यह उपलब्धि भारत को न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगी बल्कि वैश्विक मंच पर उसकी राजनैतिक स्थिति को भी सुदृढ़ करेगी।
📰 निष्कर्ष
भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर यह साबित कर दिया है कि उसकी आर्थिक नीति अब किसी पर निर्भर नहीं, बल्कि पूरी तरह स्वदेशी सोच और रणनीतिक संतुलन पर आधारित है। रूस से बढ़ते व्यापार ने भारत को एक नई ऊर्जा दिशा दी है और दुनिया को यह संदेश भी — भारत अब केवल बाज़ार नहीं, बल्कि वैश्विक निर्णयों में शामिल एक सशक्त आवाज़ है।



