12 जून को अहमदाबाद में हुए भयानक एयर इंडिया प्लेन क्रैश ने पूरी दुनिया को हिला दिया था।
12 जून को अहमदाबाद में हुए भयानक एयर इंडिया प्लेन क्रैश ने पूरी दुनिया को हिला दिया था। उस विमान में सवार 241 लोगों की जान चली गई, लेकिन एक चमत्कार हुआ—48 वर्षीय विश्वास कुमार रमेश अकेले जिंदा बच निकले।
अहमदाबाद: वे खुद को ‘सबसे भाग्यशाली इंसान’ कहते हैं, लेकिन इस भाग्य के पीछे छिपा दर्द इतना गहरा है कि आज भी उनकी जिंदगी एक अनंत संघर्ष बन चुकी है। हादसे के चार महीने बाद, रमेश पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) और सर्वाइवर गिल्ट से जूझ रहे हैं। इंग्लैंड के लीसेस्टर में रहने वाले रमेश की यह कहानी न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि उन लाखों लोगों की आवाज है जो बड़े हादसों से बचने के बाद भी मानसिक जख्मों की चपेट में फंस जाते हैं।
रमेश का जीवन पहले सामान्य था। वे एक सफल व्यवसायी थे, परिवार के सहारे जीते थे। लेकिन उस फ्लाइट में उनके छोटे भाई अजय भी सवार थे, जो उनसे महज कुछ सीटें दूर बैठे थे। हादसे के दौरान रमेश ने देखा कैसे जलते हुए मलबे में सब कुछ नष्ट हो गया। किसी तरह वे बाहर निकले, लेकिन अजय का चेहरा, चीखें और आग की लपटें आज भी उनके दिमाग में घूमती रहती हैं। “मुझे अब भी लगता है कि मैं उसी पल में फंसा हुआ हूं। रातों को नींद नहीं आती। सबसे ज्यादा यही सवाल सताता है—जब मेरा भाई नहीं बचा, तो मैं क्यों बच गया?” रमेश ने हाल ही में एक इंटरव्यू में अपना दर्द बयां किया। यह सर्वाइवर गिल्ट का क्लासिक लक्षण है, जहां बचने वाला खुद को दोषी मानने लगता है।
हादसे के बाद रमेश इंग्लैंड लौट आए, लेकिन उनका घर अब जेल जैसा लगता है। वे ज्यादातर समय अपने कमरे में अकेले बैठे रहते हैं। न पत्नी से बात करते हैं, न बेटे से। “मैं ज्यादातर समय अपने कमरे में अकेला बैठा रहता हूं। न अपनी पत्नी से बात करता हूं, न बेटे से। दिमाग से वो रात निकलती ही नहीं है,” वे बताते हैं। उनका व्यवसाय तबाह हो चुका है, आर्थिक तंगी ने मानसिक दबाव को और बढ़ा दिया है। शरीर पर लगी चोटें—पैरों, कंधों और पीठ पर—अभी भी दर्द पैदा करती हैं, लेकिन असली पीड़ा अंदर की है। “मेरा भाई मेरा सहारा था। उसने हमेशा मेरा साथ दिया। अब मैं बिल्कुल अकेला हूं,” रमेश की यह पुकार न केवल उनके नुकसान को दर्शाती है, बल्कि उन परिवारों की भी जो ऐसे हादसों में बिखर जाते हैं।
PTSD: ट्रॉमा का लंबा साया
पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) कोई साधारण तनाव नहीं है। यह एक गंभीर मानसिक विकार है जो किसी भयानक घटना—जैसे दुर्घटना, हिंसा या प्राकृतिक आपदा—के बाद विकसित होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, बड़े सदमों से गुजरने वाले 8 से 15 प्रतिशत लोग PTSD का शिकार हो सकते हैं। एक स्टडी में पाया गया कि हादसे या विस्फोट के सालों बाद भी कई लोग इसके लक्षण झेलते रहते हैं, खासकर वे जिन्होंने अपनों को खोया हो।
रमेश के मामले में, डॉक्टरों ने स्पष्ट रूप से PTSD का निदान किया है। लेकिन घर लौटने के बाद उन्हें उचित इलाज नहीं मिल पाया। एयर इंडिया की ओर से मुआवजा और औपचारिक सहायता मिल रही है, लेकिन मानसिक देखभाल की कमी ने उनकी हालत बिगाड़ दी है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि PTSD एक गहरा शोक है। अगर यह लंबे समय तक बना रहे या दैनिक जीवन प्रभावित करे, तो डिप्रेशन का रूप ले सकता है।
PTSD से उबरना असंभव नहीं, लेकिन इसमें समय और पेशेवर मदद जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि खुलकर बात करना—परिवार, दोस्तों या सपोर्ट ग्रुप के साथ—सबसे पहला कदम है। फिल्ममेकर काई डिकेंस, जो खुद ट्रॉमा सर्वाइवर्स पर काम कर चुके हैं, कहते हैं, “जो लोग बच जाते हैं, वे भी अपने अंदर बहुत कुछ खो देते हैं। उन्हें ‘चमत्कार’ कहना अच्छा तो लगता है, लेकिन इससे उन पर ‘मजबूत बने रहने’ का दबाव और बढ़ जाता है।” एक अन्य मनोवैज्ञानिक के अनुसार, “जब आप अपने दर्द को किसी अच्छे काम में बदलते हैं, तो धीरे-धीरे मन हल्का होने लगता है।” उदाहरण के लिए, कई सर्वाइवर्स पीड़ित परिवारों की मदद या जागरूकता अभियान चलाकर अर्थ ढूंढते हैं। रमेश के लिए सुझाव यही हैं। थेरेपी सेशन, मेडिटेशन और परिवार का साथ। लेकिन आर्थिक और भावनात्मक बाधाएं इसे मुश्किल बना रही हैं। एयर इंडिया जैसी कंपनियों को न केवल मुआवजा, बल्कि लंबी अवधि की मेंटल हेल्थ सपोर्ट देनी चाहिए।
निष्कर्ष : विश्वास कुमार रमेश की कहानी सिखाती है कि हादसे से बचना अंत नहीं, बल्कि नई जंग की शुरुआत है। PTSD जैसे विकार लाखों जिंदगियों को चुपचाप निगल जाते हैं, लेकिन जागरूकता और सहायता से इन्हें हराया जा सकता है। रमेश जैसे सर्वाइवर्स को समाज का साथ चाहिए—न केवल सहानुभूति, बल्कि व्यावहारिक मदद। यदि आप या आपके किसी जानने वाले को ऐसे लक्षण दिखें, तो तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करें। याद रखें, मर-मर कर जीना कोई जीवन नहीं उबरना ही असली जीत है। न्यूज मीडिया किरण ऐसी कहानियों को उजागर कर मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा को बढ़ावा देता रहेगा।



