ऑपरेशन सिंदूर की गूंज मैदान से बाहर सुनाई दे रही
निर्दोषों के खून के बाद भी यह मैच खेलना जरूरी था?

कल रात दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में एशिया कप 2025 का फाइनल मैच भारत और पाकिस्तान के बीच खेला गया। भारत ने इस थ्रिलर मुकाबले में पाकिस्तान को 5 विकेट से हराकर नौवीं बार एशिया कप का खिताब अपने नाम कर लिया। लेकिन यह जीत सिर्फ मैदान की नहीं, बल्कि एक बड़े राजनीतिक और नैतिक द्वंद्व की कहानी बन गई। जहां एक तरफ खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया, वहीं दूसरी तरफ भारतीय टीम के इशारेबाजी, ट्रॉफी न उठाने जैसे कदमों ने सवाल खड़े कर दिए—क्या पाकिस्तान के आतंकवाद की भेंट चढ़े निर्दोषों के खून के बाद भी यह मैच खेलना जरूरी था? या फिर यह सब सिर्फ दिखावा था?
आंकड़ों में भारत की धमक
पाकिस्तान ने टॉस हारकर पहले बल्लेबाजी करते हुए 19.1 ओवर में 146 रन बनाए। साहिबजादा फरहान ने 57 और फखर जमान ने 46 रनों की उपयोगी पारियां खेलीं, लेकिन भारत के स्पिनर कुलदीप यादव ने 4 विकेट लेकर पाकिस्तानी बल्लेबाजी को ध्वस्त कर दिया। जवाब में भारत ने 19.4 ओवर में 150 रन के लक्ष्य को 5 विकेट खोकर हासिल कर लिया। तिलक वर्मा की नाबाद 69 रनों की पारी और शिवम दुबे के 33 रनों ने मैच को भारत की झोली में डाल दिया। जसप्रीत बुमराह ने 2/25 के आंकड़ों से पाकिस्तान को दबाव में रखा। यह भारत की लगातार दूसरी एशिया कप जीत थी, लेकिन उत्साह के बीच विवादों का साया मंडराता रहा।
पाहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर: खून की होली जो मैदान पर पहुंच गई
यह मैच सिर्फ क्रिकेट का नहीं था। अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पाहलगाम में हुए खौफनाक आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। 22 अप्रैल को पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने पर्यटकों पर अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें दर्जनों निर्दोष मारे गए। चश्मदीदों के मुताबिक, यह हमला कश्मीर घाटी में शांति की कोशिशों को धक्का देने वाला था। इसके जवाब में 7 मई को भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ लॉन्च किया—पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के नौ ठिकानों पर मिसाइल हमले। भारत ने दावा किया कि इसमें 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए, जिनमें कई वरिष्ठ कमांडर शामिल थे। पाकिस्तानी सेना को युद्ध रोकने के लिए भारत से गुहार लगानी पड़ी।
इन घटनाओं ने भारत-पाक संबंधों को फिर से तनावपूर्ण बना दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को स्पष्ट शब्दों में कहा, “आतंक और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकती। आतंक और व्यापार साथ-साथ नहीं चल सकता।” उन्होंने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि कोई भी आतंकी हमला हो तो और स्ट्राइक होंगे। इसी संदर्भ में राजनीतिक नेताओं ने क्रिकेट सहित खेलों पर भी रोक की मांग की। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में क्रिकेट राष्ट्रीय सुरक्षा से ऊपर नहीं हो सकता। पाकिस्तान के साथ कोई खेल नहीं होगा जब तक वे आतंक को खत्म न करें।” पाहलगाम के शहीदों के परिवारों ने भी विरोध जताया—क्या उनके खून की कीमत पर मैदान पर ‘शांति’ का नाटक?
भारतीय खिलाड़ियों की इशारेबाजी: ट्रॉफी न उठाना, सिर्फ संकेत
मैच के बाद विवाद और गहरा हो गया। भारत ने ट्रॉफी स्वीकार करने से इनकार कर दिया। कप्तान सूर्यकुमार यादव ने कहा, “यह जीत देश की सेना को समर्पित है, ट्रॉफी से ज्यादा महत्वपूर्ण है पाहलगाम के शहीद।” खिलाड़ियों ने मध्य मैदान पर हाथ मिलाने से भी कन्नी काट ली—पाकिस्तानी टीम को इंतजार करवाया, जिसकी शिकायत ICC से की गई। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में भारतीय खिलाड़ी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के स्लोगन लगाते दिखे, और कुछ ने जर्सी पर काले बैंड बांधे। यह इशारेबाजी साफ बयान दे रही थी—क्रिकेट हृदय से ऊपर नहीं, लेकिन राष्ट्रहित पहले। कांग्रेस ने पीएम मोदी के इस जीत को ऑपरेशन सिंदूर से जोड़ने पर सवाल उठाए, लेकिन जनता का एक बड़ा वर्ग सहमत था।
खेला ही क्यों, अगर सब कुछ दिखावा?
अब बड़ा सवाल—अगर पाहलगाम के शहीदों का खून, ऑपरेशन सिंदूर की सर्जिकल स्ट्राइक, और नेताओं के बयान इतने मजबूत थे, तो पाकिस्तान के साथ यह फाइनल खेला ही क्यों गया? एशिया क्रिकेट काउंसिल (ACC) ने दबाव डाला, लेकिन क्या कूटनीति के नाम पर राष्ट्रीय गौरव दांव पर लगाना उचित था? खिलाड़ियों की इशारेबाजी और ट्रॉफी न उठाना तो ठीक, लेकिन अगर यही सब करना था तो मैदान पर उतरना ही क्यों? क्या यह सब अंतरराष्ट्रीय मंच पर ‘सॉफ्ट पावर’ दिखाने का दिखावा था, या फिर दबाव में लिया गया फैसला? पाकिस्तान के आतंकवाद की भेंट चढ़े सैकड़ों जिंदगियों के बाद क्रिकेट का उत्सव—क्या यह न्यायपूर्ण था?
यह जीत भारत के लिए गर्व का विषय है, लेकिन आने वाले दिनों में यह बहस तेज होगी कि खेल और सुरक्षा की लकीर कहां खींचनी है। पाहलगाम के घाव अभी ताजा हैं, और ऑपरेशन सिंदूर की गूंज मैदान से बाहर सुनाई दे रही है। क्या अगली बार हम ‘नो प्ले’ का फैसला लेंगे, या फिर यही चक्र चलता रहेगा? समय बताएगा।

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