बड़ी खुलासा,जानकर चौंक जाएंगे... बांग्लादेश में तख्ता पलट की साजिश: प्रमुख किरदार और घटनाक्रम
बड़ी खुलासा,जानकर चौंक जाएंगे...
बांग्लादेश में तख्ता पलट की साजिश: प्रमुख किरदार और घटनाक्रम
न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
बांग्लादेश:हाल ही में खुलासा हुआ है कि बांग्लादेश में पिछले एक साल से तख्ता पलट की साजिश रची जा रही थी। इस साजिश के मुख्य किरदारों में बांग्लादेश के राष्ट्रपति, सेना प्रमुख, माइक्रोफाइनेंस बैंकिंग एक्सपर्ट मोहम्मद यूनुस, खालिदा जिया का बेटा और पाकिस्तान की ISI शामिल हैं।
विदेशी समर्थन
इस साजिश को अमेरिका की बिडेन सरकार और ब्रिटेन की लेबर पार्टी द्वारा मंजूरी दी गई थी। जब लेबर पार्टी ब्रिटेन में सत्ता में आई, तब इस योजना को तेजी से आगे बढ़ाया गया। इस साजिश के लिए फंडिंग जॉर्ज सोरोस, अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा की गई थी। बिडेन का बेटा लगातार खालिदा जिया के संपर्क में था, जिससे यह संकेत मिलता है कि विदेशी शक्तियाँ इस स्थिति को बढ़ावा देने में सक्रिय थीं।
चुनावों की पृष्ठभूमि
बांग्लादेश में चुनावों के दौरान विपक्षी पार्टियों ने हिस्सा नहीं लिया, जिससे यह संदेश फैलाने की कोशिश की गई कि प्रधानमंत्री शेख हसीना तानाशाह हैं। चुनाव में विपक्ष की अनुपस्थिति के कारण शेख हसीना ने अधिकांश सीटें जीत लीं।
कोर्ट के फैसले और हिंसा
इसके बाद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आरक्षण को फिर से लागू करने के लिए एक याचिका बांग्लादेश के कोर्ट में डाली गई, जिसे अचानक स्वीकार कर लिया गया। इस फैसले के बाद देश में हिंसा भड़क उठी। पुलिस ने सख्ती से स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट ने फिर से आरक्षण को खत्म कर दिया, जिससे स्थिति और बिगड़ गई।
सेना की एंट्री
हिंसा के बढ़ने के बाद, सेना ने हस्तक्षेप किया। सेना प्रमुख ने शेख हसीना को कहा कि उन्हें देश छोड़ना होगा या भीड़ द्वारा उनकी हत्या करवाई जाएगी। शेख हसीना ने इस्तीफे की पेशकश की, लेकिन उन्हें देश में रहने की अनुमति नहीं दी गई। अंततः, उन्होंने देश छोड़ने का निर्णय लिया।
भारत पर संभावित प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश में हो रही यह उथल-पुथल भारत में भी अस्थिरता पैदा कर सकती है। इस संदर्भ में, कुछ साल पहले भारत में किसान आंदोलन के दौरान विदेशी हस्तक्षेप की भी चर्चा हुई थी, जिसमें स्वीडन में बैठी ग्रेटा थनबर्ग का टूलकिट लीक हुआ था।
निष्कर्ष
बांग्लादेश में हो रही घटनाएँ न केवल वहां के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि भारत और अन्य पड़ोसी देशों पर भी असर डाल सकती हैं। इस स्थिति में, लोकतंत्र और अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनकर उभरी है।
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