राष्ट्रनिर्माण के लिए थोड़ा अतिरिक्त श्रम व ईमानदारी जरूरी : प्रो. साकेत कुशवाहा

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न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता 

झारखंड -झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजे) व दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय  (सीयूएसबी) के संयुक्त तत्वावधान में  ऑन लाइन माध्यम में  राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आधारित  आठ दिवसीय (21- 29 अक्टूबर) फैकल्टी डेव्लपमेंट प्रोग्राम  के छठे दिन आज  भी दो सत्रों का आयोजन किया गया। विगत पांच दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों से कुल दस विद्वान प्राध्यापक अलग-अलग सत्र में शामिल हुए। छठे दिन के पहले सत्र में वक्ता के रूप में ए बी बी आई आई टी एम, ग्वालियर के निदेशक प्रो. श्रीनिवास सिंह आज प्रतिभागियों से जुड़े। 

"आई सी टी इंटीग्रेशन इन रिसर्च ऐट हाइयर लेवल" विषय पर उनके व्याख्यान को प्रतिभागियों ने रूचिपूर्वक सुना।  अपने व्याख्यान के दौरान प्रो. श्रीनिवास सिंह ने  रिसर्च में आईसीटी की भूमिका एवं जरूरत, आईसीटी की संभावनाओं, एक अच्छे शोधकर्ता के आवश्यक गुण, शोध व अनुसंधान की जरुरत, शोध कार्य से जुड़ी कठिनाइयों व इसके निराकरण के साथ-साथ इनोवेशन की आवश्यकता जैसे विषयों पर अपने विचार को प्रतिभागियों के साथ साझा किया। साथ ही उन्होंने कहा कि तनाव एवं उदासी भरे माहौल में शिक्षा अपने संभानाओं को प्राप्त नहीं कर सकती। शिक्षा के समुचित उदय के लिए शिक्षक और छात्र के मध्य खुशनुमा माहौल होना जरूरी है। वहीं दूसरे सत्र में राजीव गांधी विश्वविधालय,अरुणाचल प्रदेश, के पूर्व कुलपति साकेत कुशवाहा  ने "क्वालिटेटिव एंड टाइम बाउंड इम्लीमेंटेशन ऑफ एन ई पी 2020'' विषय पर व्याख्यान दिया। 

उन्होंने अब तक के सभी शिक्षा नीतियों के बारे में बात की और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने कैसे आकार लिया इससे प्रतिभागियों को अवगत कराया। नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 को भारत के गौरव  को वापस लाने की एक कोशिश बताया और कहा की सरकार एन ई पी के माध्यम से भारतीयता को शिक्षा तंत्र में सम्मिलित करने का प्रयास कर रही है जो कि सराहनीय है। इसके संदर्भ में उदाहरण देते हुए अरुणाचल प्रदेश में 25 जनजातीय भाषाओं का जिक्र किया जिनकी लिपियां विलुप्त होने के कगार पर थी। 

लेकिन ये भाषाएं एन ई पी के कारण पुनः जीवंत हो गई हैं, और इन भाषाओं में अब किताबों का प्रकाशन आरंभ होने को है। उन्होंने एन ई पी की जरुरत, एन ए ए सी का महत्व, डीजी लॉकर, एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट,जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रतिभागियों का ज्ञानवर्धन किया। साथ ही बहुसंकाय शिक्षा के प्रोत्साहन एवं जरूरत की बात की। प्रो. कुशवाहा ने कहा कि सिलेबस, करिकुलम एंड पेडागॉजी बेहतर हो तो शिक्षा का स्तर भी बेहतर होगा। बेहतर शिक्षा व्यवस्था की उम्मीद रखने वाले लोगों को उन्होंने महात्मा गांधी का कथन याद दिलाया कि "खुद में वो बदलाव लाइये जो दुनिया में आप देखना चाहते हैं"।
कार्यक्रम का समन्वयन डॉ सुदर्शन यादव (जनसंचार विभाग सी यू जे) एवं डॉ सुजीत कुमार (सी यू एस बी, डी एम सी एम)  ने किया। संचालन एमएमटीटीसी के निदेशक डॉ तरुण कुमार त्यागी एवं डॉ सुजीत कुमार ने किया। डॉ सुदर्शन यादव ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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