रांची का पहाड़ी मंदिर-जहां फहराया जाता है राष्ट्रीय ध्वज-बाबा के जलाभिषेक के लिए सावन में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़

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रांची का पहाड़ी मंदिर, जहां फहराया जाता है राष्ट्रीय ध्वज, बाबा के जलाभिषेक के लिए सावन में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
रांची के पहाड़ी मंदिर से कुछ अनूठी परंपराएं जुड़ी हैं. यह एक ऐसा मंदिर है जहां आदिवासी सबसे पहले नाग देवता की पूजा करते हैं. इसके बाद पहाड़ी बाबा का दर्शन करते हैं. यहां पहले नागगुफा में नाग का दर्शन करने के बाद वे पहाड़ी बाबा का दर्शन करते हैं. झारखंड की राजधानी के ह्रदयस्थली में बसे रांची पहाड़ी की उत्पति हिमालय से भी करोड़ों वर्ष पहले हुई थी. रांची स्थित पहाड़ी मंदिर देश का एकमात्र और दुनिया का ऐसा दूसरा धार्मिक स्थल है, जहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है. पहाड़ी मंदिर के अलावा वेटिकन सिटी में भी वहां का राष्ट्रीय ध्वज फहराने की परंपरा रही है.

आदिवासी बहुत प्राचीन काल से ही नाग देवता की पूजा करते आ रहे हैं. नाग देवता रांची के नगर देवता भी हैं. नाग देवता नागवंशियों के कुल देवता भी हैं. सावन में भी पहले नाग देवता की पूजा आदिवासी करते हैं. इसके बाद बाबा पहाड़ी की पूजा शुरू होती है. मंदिर से रांची शहर का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है. पर्यावरण प्रेमियों के लिए भी यह मंदिर महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूरी पहाड़ी पर मंदिर परिसर के आस- पास अलग प्रकार के हजार से अधिक वृक्ष हैं. साथ ही यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुपम सौंदर्य भी देखा जा सकता है.

 दुनिया का दूसरा ऐसा मंदिर, जहा लहराया जाता है तिरंगा 
यह ऐसा मंदिर है, जहां 15 अगस्त व 26 जनवरी को तिरंगा फहराया जाता है. देश की आजादी की खबर मिलते ही स्वतंत्रता के दीवाने 14 अगस्त की रात को ही जश्न मनाते पहाड़ी पहुंच गये और आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों की आहूति देने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि देकर उनकी शहादत को नमन किया. साथ ही आधी रात में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया. इसलिए, यहां विशाल तिरंगा भी स्थापित हो गया है. जब देश आजाद हुआ तो यहां पर तिरंगा फहराया गया. इस पहाड़ को स्वाधीनता पूर्व फांसी टुंगरी कहा जाता था. हालांकि इसका वास्तविक नाम रांची बुरू है. यहां कई स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजो ने फांसी दी थी.

 55 हजार साल पुराना इतिहास है पहाड़ी मंदिर का 
इस पहाड़ी का अध्ययन करने के लिए सौ साल पहले तक वैज्ञानिक आते थे. इसकी बनावट भी दूसरे पहाड़ों से भिन्न है. पहाड़ी बाबा 300 फीट की ऊंचाई पर हैं. उनका दर्शन करने के लिए भक्तों को 468 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. इस पहाड़ी का भू-भाग लगभग 26 एकड़ में फैला हुआ है. पहाड़ी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. पहाड़ी स्थित नाग देवता का स्थल 55 हजार साल पुराना बताया जाता है.1905 के आसपास ही पहाड़ी के शिखर पर शिव मंदिर का निर्माण हुआ था. 1908 में पालकोट के राजा से इस पहाड़ी को नगरपालिका के एक अंग्रेज अधिकारी ने मात्र 11 रुपये में ले लिया था. हस्तांतरण आलेख में यह शर्त लिखा हुआ था कि पहाड़ी पर स्थित मंदिर सार्वजनिक होगा. 1917 में एमजी हेलेट द्वारा प्रकाशित बिहार-उड़ीसा गजेटियर में रांची पहाड़ी की चोटी पर शिव मंदिर का उल्लेख है.

भगवान ही नहीं, शहीदों के सम्मन भी सिर झुकाते हैं लोग 
रांची पहाड़ी ब्रिटिशकाल में फांसी टुंगरी के रूप में महशहूर हो गया. अंग्रेजों द्वारा फ्रीडम फाइटर्स को यहां फांसी दी जाती थी. यही वजह है कि इसे फांसी टुंगरी भी कहा जाता है. आज भी मंदिर की दीवारों पर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम लिखे हुए हैं. यहां आने वाले लोग भगवान ही नहीं, शहीदों के सम्मान में भी सिर झुकाते हैं.

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