नोटबंदी: 8 साल बाद भी जाली नोटों का चलन बेलगाम
न्यूज़ मीडिया किरण डेस्क
नई दिल्ली:आज 8 नवंबर, भारत में एक ऐतिहासिक निर्णय की वर्षगांठ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को देश में नोटबंदी का ऐलान किया था, जिसके तहत 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया। इस निर्णय ने देश में आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया और इसके कई परिणाम सामने आए।
*नोटबंदी का इतिहास*
भारत में नोटबंदी का यह तीसरा मामला था। इससे पहले:
- *1946*: अंग्रेज सरकार ने उच्च मूल्य वाले नोटों को विमुद्रीकरण किया था।
- *1978*: भारतीय सरकार ने 1000, 5000 और 10000 रुपये के नोटों को विमुद्रीकरण किया।
*विमुद्रीकरण के उद्देश्य*
नोटबंदी के पीछे कई उद्देश्य थे:
1. *काले धन का उन्मूलन*: सरकार ने उम्मीद जताई कि इस कदम से काले धन का बड़ा हिस्सा बैंकों में वापस आएगा।
2. *जाली नोटों पर नियंत्रण*: जाली नोटों की समस्या को खत्म करने का भी लक्ष्य था।
3. *डिजिटल भुगतान को बढ़ावा*: कैशलेस लेनदेन को प्रोत्साहित करने के लिए यह कदम उठाया गया।
*विमुद्रीकरण के प्रभाव*
- *कैश सर्कुलेशन में वृद्धि*: विमुद्रीकरण के बाद, कैश सर्कुलेशन में तेजी से वृद्धि हुई है। 2016 में जब यह निर्णय लिया गया था, तब देश में लगभग 17.7 लाख करोड़ रुपये का कैश था, जो अब बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इसका मतलब है कि कैश सर्कुलेशन में लगभग 72% की वृद्धि हुई है।
- *जाली नोटों की वृद्धि*: हालाँकि विमुद्रीकरण का उद्देश्य जाली नोटों को कम करना था, लेकिन इसके बाद जाली नोटों की संख्या में वृद्धि हुई है। विशेष रूप से 500 रुपये के जाली नोटों में 101.93% और 2000 रुपये के जाली नोटों में 54% की वृद्धि देखी गई है।
- *डिजिटल भुगतान में वृद्धि*: विमुद्रीकरण ने डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दिया। कोरोना काल में भी डिजिटल भुगतान में तेजी आई है।
*फैसले के बाद मची थी अफरा-तफरी*
8 नवंबर 2016 को नोटबंदी के बाद अगले कई महीनों तक देश में काफी अफरा-तफरी का माहौल बना रहा। लोगों को पुराने नोट जमा करने और नए नोट हासिल करने के लिए बैंकों में लंबी लाइनों में लगना पड़ा। इस फैसले से यह भी कहा गया कि काला धन खत्म होगा और नकदी का चलन कम होगा।
*निष्कर्ष*
विमुद्रीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला है। हालांकि इसके कई लक्ष्यों को प्राप्त करने में चुनौतियाँ आई हैं, जैसे कि काले धन और जाली नोटों की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। इसके बावजूद, कैश सर्कुलेशन में वृद्धि और डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में प्रगति इस कदम के सकारात्मक पहलू हैं।
इस प्रकार, विमुद्रीकरण एक महत्वपूर्ण आर्थिक नीति थी जिसने भारत की वित्तीय प्रणाली को नया आकार देने का प्रयास किया। आज भी, इस फैसले के परिणामों पर चर्चा जारी है और यह भारतीय राजनीति एवं अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।
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