सीपीएम नेता सीताराम येचुरी का निधन,
सीपीएम नेता सीताराम येचुरी का निधन, भारतीय राजनीति में शोक की लहर
न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
नई दिल्ली: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता और महासचिव सीताराम येचुरी का बुधवार को निधन हो गया। 72 वर्षीय येचुरी लंबे समय से बीमार चल रहे थे और दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थे। सांस लेने में कठिनाई के चलते उन्हें आईसीयू में रखा गया था, जहां डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ और अंततः उनका निधन हो गया। उनके निधन से देशभर में शोक की लहर दौड़ गई है।
राजनीतिक सफर
12 अगस्त 1952 को चेन्नई में जन्मे सीताराम येचुरी ने भारतीय राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी और 1974 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने। 1977 में इमरजेंसी के दौरान येचुरी को गिरफ्तार भी किया गया था, जिसके बाद से वे देशभर में चर्चित हो गए। वे 2015 में सीपीएम के महासचिव चुने गए और तब से लेकर अब तक पार्टी के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक बने रहे। 2016 में उन्हें 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' का पुरस्कार भी मिला।
समाजवादी विचारधारा के समर्थक
येचुरी ने हमेशा से ही समाजवादी और मार्क्सवादी विचारधारा का समर्थन किया और देशभर में वामपंथी राजनीति को मजबूती दी। उनका कहना था कि भारतीय राजनीति में समाजवाद की गहरी जरूरत है और उन्होंने कई बार यह बात संसद और विभिन्न मंचों पर जोर-शोर से रखी।
निजी जीवन और दुखद घटनाएं
2021 में येचुरी के बेटे आशीष का निधन COVID-19 से हो गया था, जो उनके जीवन का सबसे दुखद अध्याय था। उस समय येचुरी ने अपने बेटे की मौत को व्यक्तिगत नुकसान से ज्यादा, देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरी के रूप में देखा था। उन्होंने सरकार से स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की मांग की थी।
देशभर में शोक
सीताराम येचुरी के निधन से भारतीय राजनीति में एक बड़ा शून्य पैदा हो गया है। उनके समर्थक और साथी नेता उन्हें एक संघर्षशील और ईमानदार नेता के रूप में याद कर रहे हैं। देशभर के राजनीतिक नेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्षी दलों के नेताओं ने भी उनके निधन को भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति बताया है।
येचुरी के निधन से भारतीय राजनीति ने एक ऐसे नेता को खो दिया है, जिसने हमेशा गरीबों, मजदूरों और वंचितों की आवाज बुलंद की। उनके निधन के साथ ही वामपंथी राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय भी समाप्त हो गया।
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