असम के झारखंडी आदिवासियों की स्थिति दयनीय, लेकिन हिमंता बिस्वा सरमा झारखंड में बन रहे आदिवासियों के हितैषी
न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
रांची: असम में झारखंडी आदिवासियों को न अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है; न जल, जंगल, ज़मीन का विशेष अधिकार है और न भाषा-संस्कृति के संरक्षण की व्यवस्था है. इस परिप्रेक्ष में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का झारखंड के आदिवासियों के अधिकारों की बात करना हास्यास्पद है. ये बातें लोकतंत्र बचाओ अभियान द्वारा प्रेस क्लब, रांची में 9 नवम्बर को आयोजित प्रेस वार्ता में असम से आये झारखंडी आदिवासियों ने रखी. प्रेस वार्ता में अभियान के आमंत्रण पर असम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के आदिवासी व सामाजिक कार्यकर्ता भाग लिए और अपने राज्यों में आदिवासियों की स्थिति पर बात रखी.
असम के एमानुएल पूर्ति, जो All Adivasi Students Association से जुड़े हैं, ने कहा कि लाखो की संख्या में बसे झारखंडी आदिवासियों को वहां आदिवासी माना ही नहीं जाता है. इसके कारण वे आरक्षण के मौलिक अधिकारों से वंचित हैं. आदिवासियों के स्वतंत्र अस्तित्व को भी मिटाया जा रहा है.उनके पास तो अपना घर बनाने के लिए भी भूमि नहीं है. झारखंड में तो CNT-SPT कानून आदिवासियों का सुरक्षा कवच है, लेकिन वहां ऐसा कोई कानून नहीं है. असम में झारखंडी आदिवासी बड़ी संख्या में चाय बागानों में मज़दूरी करते हैं जहाँ उनका व्यापक शोषण होता है. बहुत संघर्ष के बाद 150-225 रु मज़दूरी मिलती है जो कि न्यूनतम दर से बहुत कम है. आदिवासी मजदूरों की स्वास्थ्य की दयनीय स्थिति है। वहां की भाजपा सरकार झारखंडी आदिवासियों को दरकिनार करके रखती है. झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में घूमने के बाद पता चला कि यह तो आदिवासियों का अपना राज्य है और यहां हेमंत सोरेन सरकार आदिवासियों के अधिकारों के लिए कोशिश करती है जिसे केंद्र सरकार कमज़ोर करती है.
मध्य प्रदेश से आये आदिवासी नेता राधेश्याम काकोड़िया ने बताया कि पिछले कुछ दशकों से राज्य में भाजपा की डबल बुलडोज़र सरकार के होने के कारण आदिवासी समुदाय की समस्याएं गंभीर रूप ले चुकी हैं. वहां तो आदिवासियों की विशिष्ट संस्कृति और पहचान को भाजपा और आरएसएस द्वारा ख़तम किया जा रहा है. उनकी पारंपरिक व्यवस्था और त्योहार को खत्म किया जा रहा है. वहां तो ऐसी स्थिति है कि आदिवासी पर एक सवर्ण व्यक्ति द्वारा पेशाब करने के बाद भी उस पर कार्यवाई नहीं होती है. आज दोषी व्यक्ति खुला घूम रहा है. मध्य प्रदेश में तो बाँध, खनन और उद्योगों के लिए आदिवासी बड़ी संख्या में विस्थापित हो रहे हैं और उन्हें न पार्यप्त मुआवज़ा मिल रहा है और न सही से पुनर्वास हो रहा है. यह मज़ाक ही है कि अपने राज्य में आदिवासियों पर हो रहे शोषण को रोकने के बजाय पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान झारखंड आकर आदिवासियों के अधिकार की बात कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के आलोक शुक्ला, जो हसदेव अरण्य जंगल को बचाने के संघर्ष में जुड़े हैं, ने बताया कि हसदेव अरण्य के समृद्ध जंगलों का विनाश अदानी कंपनी के मुनाफे और लूट के लिए हो रहा है. सिर्फ हसदेव में अदानी के लिए 3 खनन परियोजनाओं में 9 लाख पेड़ काटे जाने हैं. छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार बनते ही हसदेव अरण्य में सुरक्षा बलों की फौज उतार कर रातों रात जंगल की कटाई शुरू कर दी गयी. भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार मिलकर बेशर्मी से सभी संसाधनों को पूंजीपतियों को सौंप रही है. बिना ग्राम सभा से सहमती लिए फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पुलिस कैंप स्थापित करना और खनन करना आम बात हो गई है। जो विरोध कर रहे हैं, उन पर फर्जी आरोप लगाकर माओवादी घोषित किया जा रहा है और एनकाउंटर किया जा रहा है।
तीनों राज्यों से आये लोगों ने कहा कि वे अपने राज्यों में डबल बुलडोज़र भाजपा राज को देख रहे हैं. उसके भयंकर नतीजे झेल रहे हैं. और इसलिए झारखंडियों को चेतावनी देने आये हैं कि किसी भी परिस्थिति में यहां डबल बुलडोज़र भाजपा राज न बनने दें. कर्णाटक से आई सामाजिक कार्यकर्ता तारा राव ने भी पिछले डबल बुलडोज़र भाजपा राज में हुए अत्याचारों को साझा किया.
लोकतंत्र बचाओ अभियान की ओर से एलिना होरो, मंथन और रिया तूलिका पिंगुआ ने कहा कि रघुवर दास सरकार ने पांच साल पहले ही दिखा दिया था कि डबल बुलडोज़र भाजपा सरकार क्या होती है. इस बार भाजपा के सांप्रदायिक चुनावी अभियान ने तो पूरी तरह साफ़ कर दिया है कि भाजपा आदिवासियों, मूलवासियों के अधिकारों पर नहीं बल्कि विभाजन और धर्म के नाम पर चुनाव लड़ रही है. वे बस धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए घुसपैठिये, UCC, NRC रटे जा रहे हैं. आदिवासी-मूलवासियों के मूल सवालों जैसे CNT-SPT कानून, सरना कोड, खतियान आधारित स्थानीय नीति, जल, जंगल, जमीन पर अधिकार पर चुप्पी साधे हुए हैं.
प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, हिमंत बिस्व सरमा समेत सभी भाजपा नेता केवल नफरती और सांप्रदायिक भाषण दे रहे हैं. हाल में जारी हुई शोध रिपोर्ट ने भाजपा के नफरती एजेंडा काफिर से पोल खोल दिया है. भाजपा सोशल मीडिया पर करोड़ों खर्च करके विभिन्न शैडो अकाउंट के माध्यम से झूठ व साम्प्रदायिकता फैला रही है. और आदिवासी मुख्यमंत्री को जानवर, मच्छर, हैवान आदि के रूप में चित्रित कर रही है, दिखा रही है. इन सबों पर चुनाव आयोग मूकदर्शक बना हुआ है. इस परिस्थिति में लोकतंत्र बचाओ अभियान का आव्हान है कि राज्य में डबल बुलडोजर भाजपा राज न आए बल्कि अबुआ राज बने.
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