देवेन्द्र माझी का नाम इतिहास के पन्नों का सदैव गौरव बना रहेगा - लक्ष्मी सुरेन
न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
चाईबासा ।गोइलकेरा में शहीद देवेन्द्र माझी के शहादत दिवस में शिरकत कर लौटी जिला पार्षद अध्यक्ष लक्ष्मी सूरेन ने साक्षात्कार में बताई कि शहीद देवेन्द्र माझी सदैव अमर रहेंगे । जंगल आंदोलनों की श्रंखला में कोल्हान-पोड़ाहाट का जंगल आंदोलन तक ऐतिहासिक परिघटना है। जब-जब जंगल आन्दोलन की बात होगी, तब-तब देवेन्द्र माझी का नाम इतिहास के पन्नों का सदैव गौरव बना रहेगा । एक गरीब आदिवासी किसान परिवार में 15 सितम्बर 1947 को देवेन्द्र माझी ने जन्म लिया था। तीन भाइयों एवं छह बहनों में सबसे छोटे देवेन्द्र माझी के शर से पांच वर्ष की बाल्यावस्था में ही पिता-जंगत माझी का साया उठ गया। इनके भाई कालीदास माझी भी जो कि एक जुझारू स्वतंत्रता सेनानी थे, एक दुर्घटना में चल बसे। मां कुनी माझी के कमजोर कंधों पर परिवार के भरण-पोषण का भार आ गया। विषम परिस्थितियों ने बालक देवेन्द्र माझी को साहसी जुझारू एवं विद्रोही स्वभाव का बना दिया।
जिला पार्षदअध्यक्ष लक्ष्मी सूरेन ने बताया जाता है कि जब वे आठवीं कक्षा के विद्यार्थी थे, एक शिक्षक द्वारा कक्षा में आदिवासियों को अपशब्द कहे जाने पर इन्होंने तीव्र विरोध किया एवं बाद में प्रधानाध्यापक के समक्ष शिक्षक को गलती भी स्वीकारनी पड़ी थी। व्यवस्था की असमानता से क्षुब्ध होकर देवेन्द्र माझी हायर सेकेन्ड्री की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे पढ़ने का इरादा त्यागते हुए सामाजिक समानता की प्रतिस्थापना हेतु संगठन बनाकर साथियों को गोलबन्द करने लगे। कोल्हान, पोड़ाहाट के चप्पे-चप्पे पर पैदल घूमते हुए लोगों को जगाया व क्रांति के लिए उद्वेलित किया। सर्वप्रथम 1969 ई. में बीड़ी श्रमिकों को संगठित कर कंपनियों के विरुद्ध आन्दोलन का सूत्रपात किया। जिसकी प्रतिक्रिया में बीड़ी कंपनियों के दबाव पर देवेन्द्र माझी को सर्वप्रथम 1971 में बांझीकुसुम गांव की घेरेबन्दी कर गिरफ्तार किया गया था ।
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