बीजेपी की गठबंधन राजनीति में बदलाव: लेटरल एंट्री और वक्फ बिल का प्रभाव

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बीजेपी की गठबंधन राजनीति में बदलाव: लेटरल एंट्री और वक्फ बिल का प्रभाव

न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
नई दिल्ली:भारतीय राजनीति में हाल के दिनों में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई हैं, जो बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की स्थिति और उसके गठबंधन सहयोगियों के साथ संबंधों को दर्शाती हैं। सितंबर 2020 में, सरकार ने कृषि से जुड़े तीन नए कानूनों को पेश किया, जिसके खिलाफ किसानों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया। अंततः, एक साल के संघर्ष के बाद, सरकार ने उन कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया। अब, अगस्त 2024 में, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 'लेटरल एंट्री' के माध्यम से 45 पदों को भरने के लिए विज्ञापन जारी किया, लेकिन विरोध के बाद, सरकार को महज दो दिन में उस भर्ती को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

गठबंधन के दबाव का असर

2020 में, बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया था और प्रमुख सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के नाता तोड़ने से भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन 2024 में, जब एनडीए के सहयोगी दलों ने अपनी चिंताओं और विरोध को व्यक्त किया, तो बीजेपी को झुकना पड़ा। अब, बीजेपी के पास केवल 240 लोकसभा सीटें हैं, जबकि 2014 में यह संख्या 300 से अधिक थी। इस बदलाव ने स्पष्ट कर दिया है कि बीजेपी को लगभग दो दशक बाद गठबंधन राजनीति का सामना करना पड़ रहा है।

वक्फ बिल और लेटरल एंट्री पर विरोध

वक्फ (संशोधन) बिल के मामले में, जेडी(यू), एलजेपी (रामविलास) और टीडीपी जैसे सहयोगी दलों ने सरकार के प्रस्तावित बदलावों पर चिंता जताई। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने बिल को संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया। इसी प्रकार, लेटरल एंट्री के तहत 45 प्रमुख पदों के लिए भर्ती का विज्ञापन भी रद्द कर दिया गया। सहयोगी दलों ने इसे अपनी 'जीत' बताया और प्रधानमंत्री मोदी को उनकी चिंताओं का ध्यान रखने के लिए धन्यवाद दिया।

बीजेपी का जोखिम न लेना

लेटरल एंट्री में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था, और इसे विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी दलों ने 'सामाजिक न्याय के खिलाफ' बताया। बीजेपी को पहले ही लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे पर नुकसान उठाना पड़ा है, इसलिए वह और जोखिम नहीं लेना चाहती। जैसे ही विपक्ष ने आरक्षण के मुद्दे को उठाया, सरकार ने न केवल भर्ती को रद्द किया, बल्कि लेटरल एंट्री में कोटा लागू करने का भी निर्णय लिया।

भविष्य की चुनौतियाँ

आने वाले दिनों में, महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा जैसे बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां कोटा में सीधी हिस्सेदारी वाले बड़े निर्वाचन क्षेत्र हैं। ऐसे में, बीजेपी किसी भी तरह के राजनीतिक जोखिम से बचने के लिए सतर्क है।

निष्कर्ष

इन घटनाओं से स्पष्ट है कि बीजेपी को अब अपनी राजनीतिक रणनीतियों में बदलाव लाने की आवश्यकता है। गठबंधन राजनीति का यह नया दौर उसे पहले से अधिक सतर्क और संवेदनशील बना रहा है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि वह आगे कैसे कदम उठाती है। बीजेपी का यह झुकाव न केवल उसकी राजनीतिक स्थिति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि आने वाले चुनावों में उसके प्रदर्शन को भी निर्धारित करेगा।

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