सूर्य सिंह बेसरा का त्याग: झारखंड आंदोलन का ऐतिहासिक क्षण
सूर्य सिंह बेसरा का त्याग: झारखंड आंदोलन का ऐतिहासिक क्षण
न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
जमशेदपुर:12 अगस्त 1991 को झारखंड अलग राज्य की मांग के आंदोलन में एक महत्वपूर्ण घटना घटी, जब सूर्य सिंह बेसरा, जो झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के संस्थापक और घाटशिला विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित विधायक थे, ने बिहार विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया। यह दिन "त्याग - स्मरण दिवस" के रूप में जाना जाता है और इसने झारखंड आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया।
आंदोलन की पृष्ठभूमि
सूर्य सिंह बेसरा के नेतृत्व में 22 जून 1986 को जमशेदपुर में झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन का गठन हुआ। इसके बाद, 1989 में उन्होंने 72 घंटे का "झारखंड बंद" आहूत किया, जिसने 50 साल पुरानी झारखंड आंदोलन की दिशा को बदल दिया। इसी दौरान, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में झारखंड मामले पर पहली बार आजसू नेताओं और केंद्र सरकार के बीच वार्ता हुई।
चुनावी रणनीति
आजसू ने "झारखंड नहीं तो चुनाव नहीं" का नारा बुलंद किया, जिसके कारण 1989 की लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया गया। बाद में, पार्टी ने चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव में सूर्य सिंह बेसरा घाटशिला निर्वाचन क्षेत्र से विपुल मतों से निर्वाचित हुए।
राजनीतिक घटनाक्रम
1990 में, बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार बनी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन और सूरज मंडल ने राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में शामिल हो गए। इस बीच, भारत सरकार ने झारखंड विषयक समिति का गठन किया, जिसमें झारखंड अलग राज्य की मांग शामिल थी।
लालू प्रसाद यादव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के सहयोग से "झारखंड क्षेत्र विकास परिषद" का गठन किया, जिसका बेसरा ने कड़ा विरोध किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि झारखंड की मांग से समझौता नहीं किया जाएगा।
इस्तीफे का निर्णय
जब "झारखंड क्षेत्र विकास परिषद विधेयक" पर बहस हो रही थी, तब बेसरा ने इसका विरोध करते हुए कड़ी आपत्ति जताई। लालू प्रसाद यादव ने कहा था, "मेरी लाश पर झारखंड बनेगा," जिसके जवाब में बेसरा ने रिश्वत और परिषद के प्रस्ताव को ठुकराते हुए 12 अगस्त 1991 को अपना इस्तीफा दिया।
निष्कर्ष
सूर्य सिंह बेसरा का यह कदम झारखंड आंदोलन के लिए एक प्रेरणादायक घटना बन गया। उनका त्याग और प्रतिबद्धता ने झारखंड की स्वतंत्रता की दिशा में एक नई ऊर्जा भरी। आज, 12 अगस्त को "त्याग - स्मरण दिवस" के रूप में मनाया जाता है, जो हमें यह याद दिलाता है कि संघर्ष और बलिदान के बिना कोई भी आंदोलन सफल नहीं हो सकता।
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