अंधविश्वास और कुप्रथा के कारण कुदलीबाद गांव में बीमारी से बचाने हेतु परिजनों ने लोहे को गर्म कर मरीज के पेट को दाग दिया

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अंधविश्वास और कुप्रथा के कारण कुदलीबाद गांव में बीमारी से बचाने हेतु परिजनों ने  लोहे को गर्म कर मरीज के  पेट को दाग दिया

न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
चाईबासा।अत्यंत नक्सल प्रभावित आदिवासी बहुल सारंडा जंगल स्थित कुदलीबाद गांव में ””दगना”” (लोहे को गर्म कर पेट में दागना) जैसा अंधविश्वास इस आधुनिक विज्ञान युग में भी समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है।
  सारंडा के गांवों में चिकित्सा सुविधा का घोर अभाव है । यहां गरीबी, बेरोजगारी व यातायात की सुविधा नहीं है । इस कारण आज भी यहां अंधविश्वास और कुप्रथा अपनी जडे़ं जमाये हुये है. इसका ताजा मामला कुदलीबाद गांव का है । इस गांव का 19 वर्षीय युवक गुमीदा तोरकोड पिता ब्रजमोहन तोरकोड पिछले तीन माह से बीमार है ।उसे भूख भी नहीं लगती है । वह खाना नहीं खा रहा है ।इस कारण लगातार कमजोर होता जा रहा है. परिवार अत्यंत गरीब है । गुमीदा को अज्ञात बीमारी से बचाने हेतु परिजनों ने कुछ दिन पूर्व अंधविश्वास का सहारा लेते हुये लोहे को गर्म कर उसके पेट को दाग दिया । इससे गुमीदा के पेट में बड़ा जख्म हो गया है ।इस घटना की जानकारी सारंडा के समाजसेवी संतोष कुमार पंडा को मिली तो उन्होंने तत्काल उस युवक को मेघाहातुबुरु बुलाया. उसके परिजनों को जागरुक किया । उसे इलाज के लिए जिला परिषद अध्यक्ष लक्ष्मी सुरेन तत्काल इलाज के लिए एंबुलेंस से टाटा स्टील की नोवामुंडी अस्पताल में भेज दी ।लक्ष्मी सुरेन ने संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान   में शिक्षा के अभाव में लोगअंधविश्वास का मार्ग की ओर चले जाते हैं ।शिक्षित व्यक्ति कभी भीइस तरह की हरकत नहीं करता है ।उन्होंने कहा कि गांव-गांव तक लोगों को अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने  हेतु प्रयास करना होगा ।

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