संदेह के घेरे में मनरेगा योजना-लाखों रूपये की निकासी
संदेह के घेरे में मनरेगा योजना, अवैध वेंडर बनाकर की जा रही है लाखों रूपये की निकासी
न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
चाईबासा ।पश्चिम सिंहभूम जिला के विभिन्न प्रखंडों व पंचायतों समेत सारंडा के विभिन्न पंचायतों में संचालित मनरेगा योजनाओं में भारी भ्रष्टाचार की वजह से योजनाएं धरातल पर पूरी तरह से उतर नहीं पा रही है। विभिन्न प्रखंडों के पदाधिकारी, रोजगार सेवक, वेंडर व पंचायत प्रतिनिधियों का गठजोड़ मनरेगा योजनाओं के पैसों की भारी लूट मचाये हुये हैं। दर्जनों मजदूरों को जौब कार्ड के जरीये रोजगार देने के नाम पर उनके खाते में बिना काम किये पैसा डाल पुनः उनके खाते से पैसा निकाल मजदूरों को मामूली पैसा देकर भारी गोलमाल किया जा रहा है। मनरेगा योजनाओं में सामग्री आपूर्ति करने वाले लगभग 80 फीसदी रजिस्टर्ड वेंडरों का अपना सामग्री सप्लाई की दुकान तक नहीं है। इस संबंध में जब मनरेगा लोकपाल अरुणाभ कर से पूछा गया तो उन्होंने बेबाकी से कहा कि यह सही है की पूरे जिले में कुछ प्रखंड को छोड़ बाकी प्रखंड व पंचायत में भारी लूट व अनियमितता है। उन्होंने कहा कि जिले में रजिस्टर्ड 80 फीसदी वेंडरों का अपना दुकान नहीं है। जबकि उनका दुकान होना अनिवार्य है। दुकान के आगे डिस्प्ले बोर्ड लगा होना चाहिए जिसमें जीएसटी नम्बर, पता, फार्म का नाम लिखा होना चाहिए। इसके अलावे जिन सामग्रियों को वह सप्लाई करते हैं वह सामग्री का स्टौक दुकान में होना चाहिये। उन्होंने कहा कि सबसे आश्चर्य की बात है कि ब्लौक में वेंडर का बही-खाता तक नहीं है। जगन्नाथपुर प्रखंड का जांच में एक वेंडर पास पंचायत का 60 लाख रूपये पाया व उसे रिकवर किया। इस पैसा को मुखिया व पंचायत सचिव द्वारा दिया गया था। ऐसे लगभग 90 करोड़ रूपये विभिन्न वेंडरों के पास पकडा़ गया था। ऐसे पैसों का कोई हिसाब लेने वाला नहीं है। ये वेंडर बिना सामग्री सप्लाई के सिर्फ जीएसटी बिल फर्जी तरीके से काट रहे हैं। जांच करने पर बीडीओ का सहयोग नहीं मिलना व हमसे भिड़ जाना। बीडीओ को जिला व स्टेट पदाधिकारी बचाने में लग जाते थे। सबसे आश्चर्य की बात है कि तालाब, बागवानी आदि कार्य हेतु मिट्टी जाँच हेतु लैब तक नहीं है। बिना मिट्टी की जांच के कैसे यह काम हो रहा है। पौधा व तालाब का पानी सुख जायेगा। सभी प्रकार की मिट्टियों के लिये एक तरह का खाद सप्लाई होती है। उन्होंने कहा कि जिले में मनरेगा कार्यालय होना चाहिये। प्रखंड कार्यालय में एक रजिस्टर हो जिसमें योजना, एमबी बुक से जुडा़ एक यूनिक नम्बर दर्ज हो तथा बीडीओ का उसमें हस्ताक्षर हो। कृषि विभाग द्वारा सभी मुखियाओं को प्रशिक्षण देने का कार्य हो। जेई, एई कार्यस्थल पर नहीं जाते, इनपर जिम्मेदारी तय हो।
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