झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतियां विषय पर व्याख्यान

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झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतियां विषय पर व्याख्यान

न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता

रांची: भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतियां विषय पर व्याख्यान झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग एवं मद्रास विश्वविद्यालय के “रक्षा और सामरिक अध्ययन विभाग” के प्रोफेसर उत्तम कुमार जमदाग्नि द्वारा “ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतियों” पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. विभूति भूषण विश्वास ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी दी और सभी 
प्रतिभागियों का स्वागत किया .
आलोक कुमार गुप्ता (डीन, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, सीयूजे) ने अपने स्वागत भाषण मे अतिथि का स्वागत करते हुए कहा  कि भारत, दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले और विविध संस्कृति वाले देशों में से एक है,  इसलिए इसे  राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों की एक जटिल श्रृंखला का सामना करना पड़ता है जो पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों क्षेत्रों में फैली हुई हैं।

प्रोफेसर उथम कुमार जमदग्नि ने अपने व्याख्यान में  कहा कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा उसके भूराजनीतिक वातावरण से काफी प्रभावित है। प्राथमिक रूप से बाहरी चुनौती पड़ोसी पाकिस्तान के साथ उसके विवादास्पद संबंधों से उत्पन्न होती है, जो लगातार झड़पों, सीमा पार आतंकवाद और कश्मीर क्षेत्र पर चल रहे विवादों में दिखती है । 
पाकिस्तान में चरमपंथी समूहों की मौजूदगी और क्षेत्र को अस्थिर करने की उनकी क्षमता  भारत की इस चुनौती को और बढ़ा देती है। इसके अतिरिक्त, एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के 
रूप में चीन के उदय ने भारत के सुरक्षा परिदृश्य में नए आयाम पेश किए हैं। निवेश और 
रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से हिंद महासागर में बढ़ती चीनी उपस्थिति भी भारत के लिए एक रणनीतिक चिंता का विषय है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि आतंकवाद भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है, विभिन्न आतंकवादी समूह भारत की  सीमाओं के भीतर और सीमा पार सक्रिय हैं। डिजिटल युग में, साइबर सुरक्षा भी राष्ट्रीय सुरक्षा का 
एक महत्वपूर्ण पहलू बन गई है। भारत के साइबर  बुनियादी ढांचे, सरकारी डेटाबेस और
वित्तीय प्रणालियो को कई बार निशाना बनाया गया है और भारत को लगातार साइबर हमलों का सामना करना पड़ता है। ये हमले राज्य और गैरराज्य अभिनेताओं द्वारा किए गए  हैं, जिनमें आतंकवादी समूह और विभिन्न उद्देश्यों वाले हैकर्स भी शामिल हैं।
इसी कारण से संवेदनशील जानकारी को सुरक्षित रखने और महत्वपूर्ण प्रणालियों की 
अखंडता को बनाए रखने की क्षमता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी जैसे गैरपारंपरिक सुरक्षा खतरे भी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। मौसम का बदलाव, समुद्र के बढ़ते स्तर और कृषि पैटर्न में बदलाव सहित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव मौजूदा कमजोरियों को बढ़ा सकते हैं, खासकर की प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त क्षेत्रों में इनका असर ज़्यादा दिखेगा । अंत में, प्रोफेसर उथम ने  कहा कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को पारंपरिक भूराजनीतिक तनाव, आंतरिक विद्रोह, आतंकवाद, साइबर खतरों और जलवायु परिवर्तन 
जैसे गैरपारंपरिक मुद्दों के संयोजन से नयी  चुनौतियां मिली है । इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है जिसमें सीमा सुरक्षा को मजबूत करना, 
आंतरिक शासन में सुधार करना होगा , साइबर सुरक्षा उपायों को बढ़ाना होगा  और 
अंतर्निहित कमजोरियों को दूर करने के लिए सामाजिक- आर्थिक विकास को बढ़ावा देना होगा तभी  भारत इस सभी खतरों से लड़ पाएगा ।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अशोक निमेष ने व्याख्यान के बाद अपना अवलोकन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि पड़ोसी देशों के साथ भूराजनीतिक तनाव की जटिल परस्पर क्रिया से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में है। इन चुनौतियों की बहुआयामी प्रकृति , सैन्य तैयारी, आंतरिक शासन और सामाजिक-आर्थिक सुधारों को एकीकृत करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण की मांग करती है। प्रभावी  प्रबंधन के लिए स्थिरता और लचीलेपन के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों के साथ तत्काल सुरक्षा जरूरतों को संतुलित करने की आवश्यकता देश को है।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. विभूति भूषण विश्वास ने कहा कि भारत की सुरक्षा दृष्टि का उद्देश्य आंतरिक और गैरपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए सक्रिय उपायों के साथ पारंपरिक रक्षा क्षमताओं को 
संतुलित करना है। यह राष्ट्रीय लचीलेपन और स्थिरता को बढ़ाने के लिए रणनीतिक साझेदारी, उन्नत प्रौद्योगिकी और सामाजिक-आर्थिक विकास पर जोर देने और बदलाव करने से ही होगी । व्याख्यान के दौरान विभाग के सभी संकाय, शोधार्थी और छात्र उपस्थित थे और  भारत एवं पड़ोसी देशों के विश्वविध्यालय के विद्वान भी व्याख्यान मे शामिल हुए।

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