8 सितम्बर 1980 की गुवा गोली कांड
8 सितम्बर 1980 की गुवा गोली कांड में दर्जनों आदिवासी आंदोलनकारी व पांच बीएमपी (बिहार मिलिट्री पुलिस) के जवान शहीद और दर्जनों घायल हुये थे...
गुवा शहीद स्थल के निमार्ण के उपरांत निरंतर शहीदों के अश्रितो को सम्मान मिलता आ रहा है , मो तबारक खान
न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
गुवा।गुवा बाजार में शहीद स्थल का निर्माण गुवा गोली काण्ड के तीन वर्षों बाद शहीद स्थल के संस्थापक सह पश्चिम सिंहभूम पूर्व सांसद कृष्णा मार्डी द्वारा कराया गया था।तब से गुआ में शहीद दिवस मनाने का सिलसिला जारी है । शहीद स्थल के संस्थापक
सह पश्चिम सिंहभूम पूर्व सांसद कृष्णा मार्डी के सतत प्रयासो के परिणाम स्वरूप गुवा के शहीदों के अश्रितो को निरन्तर सम्मान मिलता आ रहा है । गुवा शहीद स्थल बनने के उपरांत लोगों में शहीदों के प्रति श्रद्धा भाव जागा। उसके पश्चात निरंतर लोगो का भीड किसी मेले से कम नहीं रह रहा है।
झामुमों वरीय नेता सह सांसद सलाहकार मो तबारक खान ने बताया कि झारखंड अलग राज्य निमार्ण के ध्येय से झारखंड आंदोलन के तहत वनों पर वनवासियों का अधिकार एवं गुआ खदान से निकलने वाली लाल पानी से प्रभावित व बंजर हो रही खेतों को नुकसान पहुंचाने से रोकने के परिणाम स्वरूप गुआ का गोलीकांड की घटना घटी थी।
8 सितम्बर 1980 को हुए इस गोली कांड में दर्जनों आदिवासी आंदोलनकारी व पांच बीएमपी (बिहार मिलिट्री पुलिस) के जवान शहीद और दर्जनों घायल हुये थे । वर्ष 1980 के दशक में झारखंड आंदोलन के नाम पर सारंडा के जंगलों की भारी पैमाने पर कटाई सारंडा के बाहर से आये लोगों द्वारा निरंतर किया जा रहा था ।जंगलों को मैदान बना कर उस वन भूमि पर कब्जा करने का कार्य चल रहा था ।वन विभाग निर्दोषों को भेजने लगा जेल इसके खिलाफ गुआ वन विभाग ने कार्यवाही करते हुये इस अभियान में शामिल लोगों समेत कुछ निर्दोष लोगों को भी पकड़ कर जेल भेजना प्रारंभ कर दिया था । हालांकि उस समय झारखंड अलग राज्य को लेकर पूरे राज्य में व्यापक आंदोलन चल रहा था । उस समय चक्रधरपुर के पूर्व विधायक स्व देवेन्द्र माझी के आह्वान पर सारंडा, कोल्हान व पोड़ाहाट रिजर्व वन क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों ने आठ सितम्बर 1980 की सुबह से ही गुआ में वन विभाग एवं इस्को प्रबंधन के खिलाफ पारंपरिक हथियारों के साथ संगठित होने लगे थे।आंदोलनकारियों की मांग थी कि जंगल कटाई के नाम पर फर्जी मुकदमा कर जेल भेजे गये लोगों को रिहा करो, फर्जी मुकदमा वापस लो, लाल पानी खदानों से नदी-नालों व खेतों में छोड़ना बंद करो, आदि मांगों को लेकर वन विभाग तथा इस्को प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी व भाषणबाजी होती रही । अन्ततः गुआ में धारा 144 लगा बीएमपी व बिहार पुलिस के जवानों को तैनात किया गया था।आंदोलन में पूर्व विधायक बहादुर उरांव, झामुमो नेता भुवनेश्वर महतो, सुखदेव भगत, सुला पूर्ति आदि आदिवासियों के दर्जनों प्रमुख नेता शामिल थे ।आंदोलनकारी, वन विभाग कार्यालय की तरफ पारंपरिक हथियार के साथ बढ़ रहे थे ।स्थिति को सामान्य व नियंत्रित करने हेतु आदिवासियों के नेता भुवनेश्वर महतो को बीएमपी जवानों ने गिरफ्तार कर लिया ।इसके बाद स्थिति विस्फोटक हो गई और नारेबाजी के साथ भड़काऊ बयानबाजी भीड़ ने तेज कर दी ।भीड़ ने बीएमपी जवानों पर तीर चलाया, तो चली गोली उत्तेजित भीड़ में से कुछ लोगों ने बीएमपी जवानों को निशाना कर तीर चलाया ।इसमें पांच जवान शहीद हो गए ।दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो गई ।इसमें दर्जनों आंदोलनकारी घायल हो गए ।उन्हें गुआ अस्पताल में इलाज हेतु ले जाया गया ।इस बीच बीएमपी जवानों को पता चला कि घायल उत्तेजित भीड़ में से कुछ लोगों ने बीएमपी जवानों को निशाना कर तीर चलाया ।इसमें पांच जवान शहीद हो गए ।दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो गई ।इसमें दर्जनों आंदोलनकारी घायल हो गए । उन्हें गुआ अस्पताल में इलाज हेतु ले जाया गया ।इस बीच बीएमपी जवानों को पता चला कि घायल आंदोलनकारी गुआ अस्पताल में इलाज हेतु गये हैं, तो सभी वहां पहुंच घायलों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी ।इसमें दर्जनों आंदोलनकारी मारे गये और सैकड़ों घायल हो गए थे ।
झामुमों के वरीय नेता सह सांसद सलाहकार मो तबारक खान के अनुसार
उक्त घटना के बाद लगभग तीन वर्षों तक सारंडा क्षेत्र में दहशत और आक्रोश व्याप्त रहा । गुवा गोलीकांड का चश्मदीद बेड़ा राईका निवासी भोरगोड़िया सिरका को गुआ पुलिस की गोली जबडे़ के आर-पार हो गई थी । वह जान बचा कर घायल अवस्था में जंगल में भाग गया ।जंगल में ही जड़ी बूटियों से इलाज कर स्वस्थ तो हो गया ।लेकिन, उसके दिल- दिमाग में उस कांड की यादें और घाव आज भी ताजा हैं ।
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