आदिवासी मित्र मंडल ने ' ओत् गुरु कोल लाको बोदरा ' की 105 वॉं जयंती मनाई
आदिवासी मित्र मंडल ने ' ओत् गुरु कोल लाको बोदरा ' की 105 वॉं जयंती मनाई
न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
चाईबासा/चक्रधरपुर: हो आदिवासियों की मातृभाषा भाषा 'हो भाषा' है, जिसकी लिपि "वारंग चीति" है। इस लिपि की खोज कोल "लाको बोदरा" जी ने चालीस के दशक में किया था। साथ ही उन्होंने लिपि के प्रचार-प्रसार के लिए ‘आदि संस्कृति एवं विज्ञान संस्थान’ (एटे:ए तुर्तुङ सुल्ल पीटिका अक्हड़ा) की स्थापना भी की। यह संस्थान आज भी हो भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कार्य करती है। वारांग चीति लिपि के खोज के कारण ही कोल लाको बोदरा जी को ' ओत गुरु ' की उपाधि मिली। और हो समुदाय के द्वारा हर वर्ष आज के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है।
आज इस अवसर पर श्री चमरू जामुदा ने लाको बोदरा की जीवनी के बारे बताया और श्रीमती नीतिमा जोंको ने अपनी आदिवासी भाषा एवं सांस्कृति को बचाये रखने पर जोर दिया।
इस मौके पर सुखराज सुरीन, जगन्नाथ बांदा, बसंत लागुरी, मनीष बांदिया, शुरू गागराई, जानकी होनहागा आदि मौजूद थे।
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