सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा
न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
नई दिल्ली: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार है। यह फैसला 1967 में दिए गए एक पूर्व निर्णय को पलटता है, जिसमें एएमयू को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना गया था।
निर्णय का विवरण
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में 4-3 के बहुमत से चार अलग-अलग फैसले सुनाए। पीठ की अध्यक्षता Chief Justice DY Chandrachud ने की, जिन्होंने अपने और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के लिए बहुमत का फैसला लिखा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, और सतीश चंद्र शर्मा ने भी इस मामले में अपने असहमति वाले फैसले प्रस्तुत किए। बहुमत के फैसले में कहा गया है कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा उसके द्वारा निर्धारित परीक्षणों के आधार पर तय किया जाना चाहिए।
एएमयू का ऐतिहासिक संदर्भ
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना 1920 में हुई थी, लेकिन इसका इतिहास 1875 से शुरू होता है, जब सर सैयद अहमद खान ने मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की थी। एएमयू अधिनियम 1920 ने इसे एक विश्वविद्यालय का दर्जा दिया। इस अधिनियम में कई संशोधन किए गए हैं, जिनमें 1951 का संशोधन भी शामिल है, जिसने मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को समाप्त कर दिया था।
कानूनी विवाद और उच्च न्यायालय का फैसला
एएमयू का अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में कानूनी दर्जा लंबे समय से विवादित रहा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2006 में इसके अल्पसंख्यक दर्जे के प्रावधान को रद्द कर दिया था। यह मामला अपील अदालतों के माध्यम से आगे बढ़ा और अंततः 2019 में इसे सुप्रीम कोर्ट की सात-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा गया।
सरकारों की भूमिका
इस मामले में विभिन्न सरकारों के दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण रहे हैं। एनडीए सरकार ने एएमयू की फंडिंग और केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थिति को आधार बनाकर अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ तर्क प्रस्तुत किए। दूसरी ओर, यूपीए सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील की, जिसमें वकील कपिल सिब्बल ने तर्क किया कि अनुच्छेद 30 एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में स्वशासन का अधिकार प्रदान करता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एएमयू और भारतीय शिक्षा प्रणाली में अल्पसंख्यक संस्थानों की स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। अब यह देखना होगा कि नियमित पीठ इस मामले पर आगे क्या निर्णय लेगी और इसका प्रभाव कैसे होगा।
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