जितिया स्पेशल: जिन बेटों ने बुढ़ापे में पहुंचाया वृद्धाश्रम, उन्हीं की लंबी आयु के लिए कर रहीं निर्जला उपवास, ऐसी होती हैं मांएं

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जितिया स्पेशल: जिन बेटों ने बुढ़ापे में पहुंचाया वृद्धाश्रम, उन्हीं की लंबी आयु के लिए कर रहीं निर्जला उपवास, ऐसी होती हैं मांएं

न्यूज़ मीडिया किरण संवाददाता
धनबाद: कहते हैं धरती पर मां भगवान का रूप हैं. 'मां शब्द में इतनी शक्ति समाहित है कि इसके उच्चारण मात्र से असीम सुकून, शांति मिलती है. बच्चों की खुशियों के लिए अपनी हर खुशी, सुख-सुविधा न्योछावर कर देती है मां. चाहे कोई भी विपरीत परिस्थिति हो अपने संतान को नहीं छोड़ती मां. इसके उलट जब उन्हें बच्चों के सहारे और प्यार की जरूरत होती है, तो उन्हें वृद्धाश्रम का सहारा मिलता है. हालांकि ऐसे मामले कम हैं, पर बदलाव व तेज रफ्तार जिंदगी के इस युग में इस कटु सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता. बच्चों के प्रति समर्पण की पराकाष्ठा का पर्व है जितिया. बिना पानी पिये मां अपने बच्चों की मंगलकामना करती हैं. कोयलांचल में भी कई वृद्धाश्रम हैं. सबलपुर वृद्धाश्रम में रहनेवाली दो बुजुर्ग मां अपने उन बच्चों की सलामती के लिए निर्जला उपवास कर रहीं हैं, जिन्होंने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचाया.


झरिया की विमला देवी तीन बेटों की मां हैं. वह चार साल से वृद्धाश्रम में रह रहीं हैं. उनके बेटे अपने-अपने परिवार के साथ अलग-अलग शहरों में रहते हैं. बड़ा बेटा दिल्ली, मंझला बेटा आसनसोल व छोटा बेटा अपने परिवार के साथ गिरिडीह में रहता है. पति के गुजरने के बाद उनको कोई अपने साथ रखने को तैयार नहीं था. इसलिए वह लालमनी वृद्धाश्रम चली आयीं. काफी दिनों तक वहां रहीं फिर इस साल वहां से साबलपुर वृद्धाश्रम आ गयीं. वह जिउतिया कर रही हैं. मंगलवार को उन्होंने नहाय-खाय किया. परिवार की याद आती है, यह सवाल पूछने पर कहती हैं कि बच्चे छोड़ सकते हैं, लेकिन मां अपने बच्चों को कैसे छोड़ेगी. मैं जहां भी रहूं, जिस हालत में रहूं उनकी सलामती के लिए हर साल जितिया करती हूं. जिमूतवाहन देव मेरे बच्चों की रक्षा करें. जब तक जिंदा हूं उनकी सलामती की दुआ करती रहूंगी.


बेटे ने मुझे छोड़़ दिया है, मैं मां हूं, कैसे छोड़ सकती हूं. ऐसा कहते हुए बलियापुर की रहनेवाली जेनु मंडल की आंखें छलक उठीं. सात माह से सबलपुर वृद्धाश्रम में रह रहीं जेनू साड़ी के कोर से आंख पोछते हुए बताया कि बलियापुर में उनका स्वामी (पति) और बेटा अपने परिवार के साथ रहते हैं. उनका बोलना उन्हें पसंद नहीं. सभी उन्हें उपेक्षित करते थे. इसलिए वह यहां चली आयीं. परिवार में जाने का मन नहीं करता है, यह सवाल पूछने पर कहा कि जहां प्यार की जगह उपेक्षा मिले वहां से दिल टूट जाता है. अपने एक मात्र बेटा को बहुत कष्ट कर पाला. जब उनको उसकी जरूरत थी, तो उसने छोड़ दिया. परिवार से अलग रहने का दुख तो है, लेकिन जब वृद्धाश्रण में अपने हमउम्र लोगों का दुख सुनती हैं, तो लगता है तिरस्कार भरी जिंदगी से यह जिंदगी भली है. जितिया करने के सवाल पर कहा कि संतान कैसी भी हो, मां उनकी खुशहाली चाहती हैं. वह भी अपने बेटे की लंबी उम्र, स्वास्थ्य के लिए जितिया का उपवास कर रही हैं. मंगलवार को नहाय खाय किया है. कल निर्जल उपवास रखकर जिमूतवाहन की पूजा करेंगी.

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